जलवायु परिवर्तन और हिमालय में बर्फ के सिकुड़ने से बढ़ता जल संकट
भूमिका
हिमालय पर्वत श्रृंखला को "तीसरा ध्रुव" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ विशाल मात्रा में बर्फ और ग्लेशियर मौजूद हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि मानव समाज के लिए भी गंभीर संकट का संकेत है। इस लेख में, हम जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में घटती बर्फ की परत और इसके कारण उत्पन्न जल संकट पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
हिमालयी ग्लेशियरों की स्थिति
विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, हिमालयी ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में, कई प्रमुख ग्लेशियरों का आकार काफी घट चुका है।
गंगोत्री ग्लेशियर: यह गंगा नदी का प्रमुख स्रोत है और प्रतिवर्ष लगभग 14-15 मीटर की दर से पीछे हट रहा है।
सतोपंथ ग्लेशियर: यह उत्तराखंड में स्थित है और बीते 50 वर्षों में 20% से अधिक बर्फ खो चुका है।
सियाचिन ग्लेशियर: हाल के वर्षों में यहाँ बर्फबारी की मात्रा में कमी आई है, जिससे इस क्षेत्र का जल स्रोत प्रभावित हुआ है।
शोध एवं रिपोर्ट्स
आईआईटी रुड़की के एक अध्ययन के अनुसार, 1962 से अब तक हिमालयी ग्लेशियरों का 30% हिस्सा पिघल चुका है।
यूनाइटेड नेशंस इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट के अनुसार, अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा, तो 2100 तक हिमालय के अधिकांश ग्लेशियर समाप्त हो सकते हैं।
ICIMOD (International Centre for Integrated Mountain Development) की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्रों में औसत तापमान वैश्विक औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
स्रोत और महत्वपूर्ण लिंक:
जल संकट की संभावना
हिमालयी ग्लेशियर दक्षिण एशिया की कई प्रमुख नदियों (गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, सिंधु) के स्रोत हैं। जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो शुरू में जल प्रवाह बढ़ता है, लेकिन लंबे समय में जल स्रोत समाप्त होने लगता है। यह स्थिति भविष्य में गंभीर जल संकट को जन्म दे सकती है।
प्रमुख प्रभाव
कृषि पर प्रभाव: गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर निर्भर कृषि को भारी नुकसान होगा।
पीने के पानी की समस्या: करोड़ों लोगों की जल आपूर्ति प्रभावित होगी।
हाइड्रोपावर उत्पादन में गिरावट: जल प्रवाह कम होने से जल विद्युत परियोजनाएँ प्रभावित होंगी।
ग्लेशियर से बनने वाली झीलों का खतरा: ग्लेशियरों के पिघलने से नई झीलें बन रही हैं, जो अचानक बाढ़ (GLOF - Glacial Lake Outburst Flood) का कारण बन सकती हैं।
समाधान और नीतियाँ
1. जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयास
कार्बन उत्सर्जन में कमी: जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को सीमित करके।
वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाना: सौर, पवन और जलविद्युत ऊर्जा को बढ़ावा देना।
2. जल संरक्षण
ग्लेशियर निगरानी प्रणाली विकसित करना।
सिंचाई प्रणालियों को अधिक कुशल बनाना।
3. वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग
भारत, नेपाल, भूटान, और चीन को मिलकर कार्य करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी आवश्यक।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन से हिमालयी ग्लेशियरों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे भविष्य में जल संकट की संभावना बढ़ रही है। इसे रोकने के लिए हमें व्यक्तिगत, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि अभी भी समय रहते उचित उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और भी विकराल रूप ले सकता है।
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